Kshatriya

Mr. Pintu Singh

Kshatriya's are the glory of the country.

​​​​क्षत्रिय
क्षत्रिय[1] (पाली रूप : क्खत्रिय), (बांग्ला रुप:ক্ষত্রিয়), क्षत्र, राजन्य - ये चारों शब्द सामान्यतः हिंदू समाज के द्वितीय वर्ण और जाति के अर्थ में व्यवहृत होते हैं किंतु विशिष्ठ एतिहासिक अथवा सामाजिक प्रसंग में पारिपाश्वों से संबंध होने के कारण इनके अपने विशेष अर्थ और ध्वनियाँ हैं। 'क्षेत्र' का अर्थ मूलतः 'वीर्य' अथवा 'परित्राण शक्ति' था।[2] किंतु बाद में यह शब्द उस वर्ग को अभिहित करने लगा जो शास्त्रास्त्रों के द्वारा अन्य वर्णों का परिरक्षण करता था।[3]वेदों तथा ब्राह्मणों में क्षत्रीय शब्द राजवर्ग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जातकों[4] और रामायण, महाभारत में [5] क्षत्रीय शब्द से सामंत वर्ग और अनेक युद्धरत जन अभिहित हुए हैं।

संस्कृत शब्द "क्षस दस्यों हो पूरा क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र नामक चार वर्गों में विभक्त था।[6] स्मृतियों में कुछ युद्धपरक जनजातियाँ जैसे कि राजपूत क्षत्रिय वर्ग के अंतर्गत अनुसूचित की गई।[7]

पारंपरिक रूप से शासक व सैनिक क्षत्रिय वर्ग का हिस्सा होते थे, जिनका कार्य युद्ध काल में समाज की रक्षा हेतु युद्ध करना व शांति काल में सुशासन प्रदान करना था। जैसे परिहार राजवंश ने अरब हमलो से भारत को 300 वर्षो तक बचाय रखा तथा इसके पश्चात राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान द्वारा अरबो से सुरक्षा की गई। पाली भाषा में "खत्रिय" क्षत्रिय शब्द का पर्याय है।[8]

उत्पत्ति
प्रारंभिक ऋगवेदिक आदिम जाति मुख्यधारा
ऋग्वैदिक कालीन शासन प्रणाली में सम्पूर्ण कबीले का प्रमुख "राजन" कहलाता था व राजन की पदवी वंशानुगत नहीं होती थी। कबीले की समिति जिसमें महिलाएं भी भागीदार होती थीं, राजा का सर्व सहमति से चयन करती थी। कबीले के जन व पशुधन (गाय) की रक्षा करना राजन का कर्तव्य था। राजपुरोहित राजन का सहयोगी होता था। प्रारंभिक दौर में अलग से कोई सेना नहीं होती थी परंतु कालांतर में शासक व सैनिकों के एक पृथक वर्ग का उदय हुआ। उस समय समाज के चार वर्णों में विभाजन की प्रणाली नहीं थी।[9]

उत्तर वैदिक काल
ऋग्वेद के "पुरुषसूक्त" में चार वर्णों के पौराणिक इतिहास का वर्णन है। कुछ विद्वान पुरुषसूक्त को ऋग्वेद में अंतःप्रकाशित मानते हैं, जो कि वैदिक साहित्य की मूल संरचना के मुक़ाबले नवीन तर्कों पर ज्यादा आधारित है। चूंकि वैदिक समाज के वर्णों में सभी भारतीय जातियों का उल्लेख नहीं है[10] अर्थात पुरुष सूक्त को वंशानुगत जाति व्यवस्था की वकालत हेतु लिखा गया था। वैकल्पिक व्याख्या यह भी है कि पुरुषसूक्त के अलावा ऋग्वेद में अन्य कहीं भी "शूद्र" शब्द का प्रयोग ही नहीं हुआ है, अतः कुछ विद्वानों का मानना है कि पुरुष सुक्त उत्तर- ऋग्वैदिक काल का एक संयोजन था, जो एक दमनकारी और शोषक वर्ग संरचना को पहले से ही अस्तित्व में होने को निरूपित व वैध बनाने हेतु लिखा गया था। [11]

हालांकि, पुरुषसूक्त में "क्षत्रिय" शब्द प्रयुक्त नहीं हुआ है, "राजन" शब्द हुआ है, फिर भी वैदिक ग्रंथावली में यह पहला अवसर माना जाता है जहाँ समाज के चारों वर्ण एक समय में व एक साथ प्रयुक्त हुये हैं।[12] "राजन्य" शब्द का प्रयोग संभवतः उस समय राजा के संबधियों हेतु प्रयुक्त हुआ माना जाता है, जबकि यह समाज के एक विशिष्ट वर्ग के रूप में स्थापित हो चुके थे। वैदिक काल के अंतिम चरणों "राजन्य" शब्द को "क्षत्रिय" शब्द से प्रतिस्थापित कर दिया गया, जहाँ "राजन्य" शब्द राजा से संबंध होना इंगित करता है तथा "क्षत्रिय" शब्द किसी विशेष क्षेत्र पर शक्ति प्रभाव या नियंत्रण को।[12] "राजन्य" शब्द प्रमुख रूप से एक ही वंशावली के तहत प्रमुख स्थान को प्रदर्शित करता है जबकि "क्षत्रिय" शब्द शासन या शासक को।[13]

जयसवाल का तर्क है कि ऋग्वेद में "ब्राह्मण" शब्द भी दुर्लभ प्रतीत होता है, यह सिर्फ "पुरुषसूक्त" में ही आया है तथा संभवतः पुरोहित वर्ग विशेष के लिए नहीं प्रयुक्त हुआ है।[12] पाणिनी, पतंजलि, कात्यायन व महाभारत के आधार पर जयसवाल मानते हैं कि राजनैतिक वर्ग को राजन्य नाम से संबोधित किया जाता था तथा राजन्य लोकतान्त्रिक रूप से चुने हुये शासक थे।[14] लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुने हुये शासक जैसे कि अंधक व वृष्णि इत्यादि इस संदर्भ में उदाहरण माने जाते हैं।[12]

राम शरण शर्मा दर्शाते हैं कि "राजन्य (राज सहयोगी वर्ग)" व "विस (वंश का कृषक वर्ग)" के मध्य बढ़ते हुये ध्रुवीकरण के उपरांत कैसे विभिन्न वंश प्रमुखों द्वारा एक सर्वमान्य मुखिया का चयन होता था जिसके फलस्वरूप एक तरफ शासक वर्ग (राजा, राजन्य, क्षत्र, क्षत्रिय) तथा दूसरी तरफ "विस" (उसी वंश के कृषक) जैसे पृथक वर्गों का विभेदीकरण उत्पन्न होता गया।[15]


क्षत्रिय शब्द का उद्गम "क्षत्र" से है जिसका अर्थ लौकिक प्राधिकरण और शक्ति है, इसका संबंध युद्ध में सफल नेता से कम तथा एक क्षेत्र पर संप्रभुता का दावा करने की मूर्त शक्ति पर अधिक है। यह आनुवांशिक कबीले की भूमि पर स्वामित्व का प्रतीक है।[16
क्षत्रियों का कुल और उनके गोत्र

"दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण, चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण." अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है। सूर्य वंश की दस शाखायें:- १. कछवाह २. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार ५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने चन्द्र वंश की दस शाखायें:- १.जादौन २.भाटी ३.तोमर ४.चन्देल ५.छोंकर ६.होंड ७.पुण्डीर ८.कटैरिया ९.स्वांगवंश १०.वैस अग्निवंश की चार शाखायें:- १.चौहान २.सोलंकी ३.परिहार ४.पमार. ऋषिवंश की बारह शाखायें:- १.सेंगर २.दीक्षित ३.दायमा ४.गौतम ५.अनवार (राजा जनक के वंशज) ६.विसेन ७.करछुल ८.हय ९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला चौहान वंश की चौबीस शाखायें:- १.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर. क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला १. सूर्यवंशी भारद्वाज सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ २. गहलोत बैजवापेण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले ३. सिसोदिया बैजवापेड सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट ४. कछवाहा मानव सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य ५. राठोड कश्यप सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा ६. सोमवंशी अत्रय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई ७. यदुवंशी अत्रय चन्द राजकरौली राजपूताने में ८. भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना ९. जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज १०. जादवा अत्रय जादौन शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा ११. तोमर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर १२. कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई १३. पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर १४. परिहार कौशल्य अग्नि इतिहास में जानना चाहिये १५. तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में १६. पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया १७. सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा १८. चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र १९. हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश २०. खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर २१. भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर २२. देवडा वत्स चौहान राजपूताना सिरोही राज २३. शम्भरी वत्स चौहान नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब २४. बच्छगोत्री वत्स चौहान प्रतापगढ सुल्तानपुर २५. राजकुमार वत्स चौहान दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला २६. पवैया वत्स चौहान ग्वालियर २७. गौर,गौड भारद्वाज सूर्य शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ २८. बैस भारद्वाज सूर्य उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में २९. गेहरवार कश्यप सूर्य माडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व ३०. सेंगर गौतम ब्रह्मक्षत्रिय जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन ३१. कनपुरिया भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं ३२. बिसैन वत्स ब्रह्मक्षत्रिय गोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं ३३. निकुम्भ वशिष्ठ सूर्य गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर ३४. सिरसेत भारद्वाज सूर्य गाजीपुर बस्ती गोरखपुर ३५. कटहरिया वशिष्ठ्याभारद्वाज, सूर्य बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर ३६. वाच्छिल अत्रयवच्छिल चन्द्र मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर ३७. बढगूजर वशिष्ठ सूर्य अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर ३८. झाला मरीच कश्यप चन्द्र धागधरा मेवाड झालावाड कोटा ३९. गौतम गौतम ब्रह्मक्षत्रिय राजा अर्गल फ़तेहपुर ४०. रैकवार भारद्वाज सूर्य बहरायच सीतापुर बाराबंकी ४१. करचुल हैहय कृष्णात्रेय चन्द्र बलिया फ़ैजाबाद अवध ४२. चन्देल चान्द्रायन चन्द्रवंशी गिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात ४३. जनवार कौशल्य सोलंकी शाखा बलरामपुर अवध के जिलों में ४४. बहरेलिया भारद्वाज वैस की गोद सिसोदिया रायबरेली बाराबंकी ४५. दीत्तत कश्यप सूर्यवंश की शाखा उन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा ४६. सिलार शौनिक चन्द्र सूरत राजपूतानी ४७. सिकरवार भारद्वाज बढगूजर ग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में ४८. सुरवार गर्ग सूर्य कठियावाड में ४९. सुर्वैया वशिष्ठ यदुवंश काठियावाड ५०. मोरी ब्रह्मगौतम सूर्य मथुरा आगरा धौलपुर ५१. टांक (तत्तक) शौनिक नागवंश मैनपुरी और पंजाब ५२. गुप्त गार्ग्य चन्द्र अब इस वंश का पता नही है ५३. कौशिक कौशिक चन्द्र बलिया आजमगढ गोरखपुर ५४. भृगुवंशी भार्गव चन्द्र वनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर ५५. गर्गवंशी गर्ग ब्रह्मक्षत्रिय नृसिंहपुर सुल्तानपुर ५६. पडियारिया, देवल,सांकृतसाम ब्रह्मक्षत्रिय राजपूताना ५७. ननवग कौशल्य चन्द्र जौनपुर जिला ५८. वनाफ़र पाराशर,कश्यप चन्द्र बुन्देलखन्ड बांदा वनारस ५९. जैसवार कश्यप यदुवंशी मिर्जापुर एटा मैनपुरी ६०. चौलवंश भारद्वाज सूर्य दक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में ६१. निमवंशी कश्यप सूर्य संयुक्त प्रांत ६२. वैनवंशी वैन्य सोमवंशी मिर्जापुर ६३. दाहिमा गार्गेय ब्रह्मक्षत्रिय काठियावाड राजपूताना ६४. पुण्डीर कपिल ब्रह्मक्षत्रिय पंजाब गुजरात रींवा यू.पी. ६५. तुलवा आत्रेय चन्द्र राजाविजयनगर ६६. कटोच कश्यप भूमिवंश राजानादौन कोटकांगडा ६७. चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत वशिष्ठ पंवार की शाखा मलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड ६८. अहवन वशिष्ठ चावडा,कुमावत खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी ६९. डौडिया वशिष्ठ पंवार शाखा बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब ७०. गोहिल बैजबापेण गहलोत शाखा काठियावाड ७१. बुन्देला कश्यप गहरवारशाखा बुन्देलखंड के रजवाडे ७२. काठी कश्यप गहरवारशाखा काठियावाड झांसी बांदा ७३. जोहिया पाराशर चन्द्र पंजाब देश मे ७४. गढावंशी कांवायन चन्द्र गढावाडी के लिंगपट्टम में ७५. मौखरी अत्रय चन्द्र प्राचीन राजवंश था ७६. लिच्छिवी कश्यप सूर्य प्राचीन राजवंश था ७७. बाकाटक विष्णुवर्धन सूर्य अब पता नहीं चलता है ७८. पाल कश्यप सूर्य यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है ७९. सैन अत्रय ब्रह्मक्षत्रिय यह वंश भी भारत में बिखर गया है ८०. कदम्ब मान्डग्य ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं ८१. पोलच भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण में मराठा के पास में है ८२. बाणवंश कश्यप असुरवंश श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में ८३. काकुतीय भारद्वाज चन्द्र,प्राचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है ८४. सुणग वंश भारद्वाज चन्द्र,पाचीन सूर्य था, अब पता नही मिलता है ८५. दहिया कश्यप राठौड शाखा मारवाड में जोधपुर ८६. जेठवा कश्यप हनुमानवंशी राजधूमली काठियावाड ८७. मोहिल वत्स चौहान शाखा महाराष्ट्र मे है ८८. बल्ला भारद्वाज सूर्य काठियावाड मे मिलते हैं ८९. डाबी वशिष्ठ यदुवंश राजस्थान ९०. खरवड वशिष्ठ यदुवंश मेवाड उदयपुर ९१. सुकेत भारद्वाज गौड की शाखा पंजाब में पहाडी राजा ९२. पांड्य अत्रय चन्द अब इस वंश का पता नहीं ९३. पठानिया पाराशर वनाफ़रशाखा पठानकोट राजा पंजाब ९४. बमटेला शांडल्य विसेन शाखा हरदोई फ़र्रुखाबाद ९५. बारहगैया वत्स चौहान गाजीपुर ९६. भैंसोलिया वत्स चौहान भैंसोल गाग सुल्तानपुर ९७. चन्दोसिया भारद्वाज वैस सुल्तानपुर ९८. चौपटखम्ब कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर ९९. धाकरे भारद्वाज(भृगु) ब्रह्मक्षत्रिय आगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर १००. धन्वस्त यमदाग्नि ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर आजमगढ वनारस १०१. धेकाहा कश्यप पंवार की शाखा भोजपुर शाहाबाद १०२. दोबर(दोनवर) वत्स या कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर १०३. हरद्वार भार्गव चन्द्र शाखा आजमगढ १०४. जायस कश्यप राठौड की शाखा रायबरेली मथुरा १०५. जरोलिया व्याघ्रपद चन्द्र बुलन्दशहर १०६. जसावत मानव्य कछवाह शाखा मथुरा आगरा १०७. जोतियाना(भुटियाना) मानव्य कश्यप,कछवाह शाखा मुजफ़्फ़रनगर मेरठ १०८. घोडेवाहा मानव्य कछवाह शाखा लुधियाना होशियारपुर जालन्धर १०९. कछनिया शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय अवध के जिलों में ११०. काकन भृगु ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर आजमगढ १११. कासिब कश्यप कछवाह शाखा शाहजहांपुर ११२. किनवार कश्यप सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार में ११३. बरहिया गौतम सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार ११४. लौतमिया भारद्वाज बढगूजर शाखा बलिया गाजी पुर शाहाबाद ११५. मौनस मानव्य कछवाह शाखा मिर्जापुर प्रयाग जौनपुर ११६. नगबक मानव्य कछवाह शाखा जौनपुर आजमगढ मिर्जापुर ११७. पलवार व्याघ्र सोमवंशी शाखा आजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर ११८. रायजादे पाराशर चन्द्र की शाखा पूर्व अवध में ११९. सिंहेल कश्यप सूर्य आजमगढ परगना मोहम्दाबाद १२०. तरकड कश्यप दीक्षित शाखा आगरा मथुरा १२१. तिसहिया कौशल्य परिहार इलाहाबाद परगना हंडिया १२२. तिरोता कश्यप तंवर की शाखा आरा शाहाबाद भोजपुर १२३. उदमतिया वत्स ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ गोरखपुर १२४. भाले वशिष्ठ पंवार अलीगढ १२५. भालेसुल्तान भारद्वाज वैस की शाखा रायबरेली लखनऊ उन्नाव १२६. जैवार व्याघ्र तंवर की शाखा दतिया झांसी बुन्देलखंड १२७. सरगैयां व्याघ्र सोमवंश हमीरपुर बुन्देलखण्ड १२८. किसनातिल अत्रय तोमरशाखा दतिया बुन्देलखंड १२९. टडैया भारद्वाज सोलंकीशाखा झांसी ललितपुर बुन्देलखंड १३०. खागर अत्रय यदुवंश शाखा जालौन हमीरपुर झांसी १३१. पिपरिया भारद्वाज गौडों की शाखा बुन्देलखंड १३२. सिरसवार अत्रय चन्द्र शाखा बुन्देलखंड १३३. खींचर वत्स चौहान शाखा फ़तेहपुर में असौंथड राज्य १३४. खाती कश्यप दीक्षित शाखा बुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा १३५. आहडिया बैजवापेण गहलोत आजमगढ १३६. उदावत बैजवापेण गहलोत आजमगढ १३७. उजैने वशिष्ठ पंवार आरा डुमरिया १३८. अमेठिया भारद्वाज गौड अमेठी लखनऊ सीतापुर १३९. दुर्गवंशी कश्यप दीक्षित राजा जौनपुर राजाबाजार १४०. बिलखरिया कश्यप दीक्षित प्रतापगढ उमरी राजा १४१. डोमरा कश्यप सूर्य कश्मीर राज्य और बलिया १४२. निर्वाण वत्स चौहान राजपूताना (राजस्थान) १४३. जाटू व्याघ्र तोमर राजस्थान,हिसार पंजाब १४४. नरौनी मानव्य कछवाहा बलिया आरा १४५. भनवग भारद्वाज कनपुरिया जौनपुर १४६. गिदवरिया वशिष्ठ पंवार बिहार मुंगेर भागलपुर १४७. रक्षेल कश्यप सूर्य रीवा राज्य में बघेलखंड १४८. कटारिया भारद्वाज सोलंकी झांसी मालवा बुन्देलखंड १४९. रजवार वत्स चौहान पूर्व मे बुन्देलखंड १५०. द्वार व्याघ्र तोमर जालौन झांसी हमीरपुर १५१. इन्दौरिया व्याघ्र तोमर आगरा मथुरा बुलन्दशहर १५२. छोकर अत्रय यदुवंश अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर १५३. जांगडा वत्स चौहान बुलन्दशहर पूर्व में झांसी १५४. वाच्छिल, अत्रयवच्छिल, चन्द्र, मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर क्षत्रियों का इतिहास गौरव शाली है और पूर्व मे और भी विस्तृत रहा है। इस लेख का प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है। अगर आपके हिसाब से कोई त्रुटि या सुधार सम्भव हो तो कमेन्ट के माध्यम से जरूर रखे त्रुटि को दूर किया जायेगा। अगर कोई क्षत्रिय-राजपूत शाखा इसमे नही जुडी है तो उसे भी अवगत कराये उसे भी सही श्रेणी मे जोड़ा जायेगा ताकि अपने नये क्षत्रिय भाई अपने इतिहास से अवगत हो सके। इस काम मे आपके सहयोग की अपेक्षा है और बिना समूहिक सहयोग के यह सम्भव भी नही है।

VISHNU SAHASRANAMAM

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥१।। यस्य द्विरद्वात्राद्या: पारिषद्या: पर: शतम् । विघ्नं निघ्नंति सततं विश्वकसेनं तमाश्रये ।।२।। व्यासं वशिष्ठरनप्तारं शक्ते: पौत्रकल्मषम। पराशरात्मजं वंदे शुकतात तपोनिधिम।।३।। व्यासाय् विष्णुरुपाय व्यासरूपाय विष्णवे। नमो वै ब्रम्हनिधये वासिष्ठाय नमो नमः।।४।। अविकाराय शुद्धाय नित्याय परमात्मने। सदैकरूपरूपाय विष्णवे सर्वजिष्णवे।।५।। यस्य स्मरणमात्रेण जन्मा संसारबन्धनात्। विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे।।६।।

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अजय सिंह चौहान

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